बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

भगवान शंकर ने तो एक बार ही विषपान किया था.

हमारे वेद पुराण यही कहते हैं,कि समुन्द्र मंथन पर भगवान शंकर ,मंथन से प्राप्त विष को ग्रहण किया था,और उसको अपने गले मे धारण कर लिया था .उनको इसी से नीलकंठ से सुशोभित किया था.
लेकिन मानव तो रोज ही विषपान करता है,साथ उसको उदरस्थ भी कर लेता है.उदरस्थ हो जाने से उसके हृदय से संवाहित होने वाली भावनायें भी उस विष से प्रभावित हो जाती हैं.
वे भावनायें क्या गुल खिलायेंगी,वह उस मानव को भी नही ज्ञात होता है.कानपुर के हेलेट अस्पताल मे भर्ती दो कन्यायें,जिनके साथ उस मानव ने उन्हीं भावनाऒ के तहत क्या नहीं किया,वर्णित नही किया जा सकता,उसके दुष्परिणाम उन कन्याओं को आजीवन भोगना होगा.
इसी विषपान के प्रभाव मे, आज कितने लोग, सोनियां गांधी, , मायावती ,ममता बनर्जी,विजयललिता,सुषमा स्वराज,मीराकुमार,आदि आदि प्रतिष्ठित महिलाओं को क्या क्या नही कहते रहते हैं,काश्मीरमे महिलाओं पर कितने अत्याचार हुये और किये जा रहे हैं,देश मे महिला वर्ग का शोषण,अगवा करना,बलात्कार करना,यदि वर्णन किया जाय,तो एक महाभारत और तैयार हो जायेगा.

इसी विषपान के दुष्परिणाम ने ,राजस्थान के एक राज्यमंत्री ने हमारी महामहिम राष्ट्रपति को भी नही बख्शा.उनको यहां तक कह दिया कि वह स्व. इन्दिरा गांधी की रसोई पकाती थीं.
तीन साल से अधिक की नावालिग की कन्याऒ पर बलात्कार करना ,इस विष के प्रभाव की पराकाष्ठा को ही पार कर दिया है.
हे शंकर भगवान इस विष के प्रभाव को भी ग्रहण कर लीजिये,स्त्री जाति को बचा लीजिये,या उनकी उत्पत्ति पर ही रोक लगाने के लिये ब्रह्मा जी से सिफ़ारिश कर दीजिये,अब देखा नहीं जाता,सहन नहीं होताहै.

6 टिप्‍पणियां:

  1. हमारी भावनायें वातावरण के दु:स्प्रभाव से विषाक्त हो गयी हैं.साथ इस देश की सीमाओं के देशों के चाल चलन ने भी हमे प्रभावित किया है.यह विषपान भगवान शंकर के विषपान से ज्यादा प्रभावशील है.
    एक प्रार्थना भगवान शंकर जी से की है.

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  2. सच है आज पग-पग पर मानव को हलाहल पान करना पड़ रहा है। व्यवस्थाएं बहुत की जटिल बन गई हैं। मानव उसी अनुरूप तैयार नहीं हुआ है।

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  3. सार्थक और समयानुकूल चिंतन, स्वागत.

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  5. सार्थक चिंतन. बेहतर प्रस्तुति...

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  6. खेद है कि यायावरी जिन्दगी से दो क्षण भी आपको नही दे सका.आप सभी को हार्दिउक धन्यवाद.आपकी प्रेरणा हमें एक नई दिशा देगी.विलम्ब के लिये खेद है.

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